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' पिता '

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 (पिता) मैं,  पिता को जानता हूं क्यों ख़त्म कर दिए उन्होंने शौक अपने क्योंकि वो कैसे मेरी मांगें टालते  वो कैसे विषमताओं में मुझे पालते वो नहीं चाहते, मेरी आंखों से भी नज़ारे छूटे मेरे भी सपने टूटे मुझसे भी मेरे अपने रुठे वो चाहते हैं , मैं जी लूं वो सब जो वो न जी पाए हों वो चाहते हैं, मेरा जीवन सरल व आसान हो मेरे नाम से उनकी पहचान हो। (सिद्धान्त तिवारी)

" जब तुम मेरे घर आए थे"

खुद से ही मैं ऊब गया था  चिंता में मैं डूब गया था प्रतिमानों के जो पहरे थे सारे के सारे बहरे थे बस उसी समय कुछ पर आए थे, जब तुम मेरे घर आए थे। तुम महलों के रहने वाले  अच्छी बातें कहने वाले  मैं तुम सदृश आकाश नहीं था मेरा घर कुछ खास नहीं था नयन मेरे तब भर आए थे, जब तुम मेरे घर आए थे। तुमने मुझको देखा जाना संघर्षों का ताना-बाना तुमने खुद को ढाल लिया था पीर मेरा संभाल लिया था फिर भी सारे सार मेरे ही सर आए थे, जब तुम मेरे घर आए थे। (सिद्धांत तिवारी 'सोनल')