" जब तुम मेरे घर आए थे"

खुद से ही मैं ऊब गया था 

चिंता में मैं डूब गया था

प्रतिमानों के जो पहरे थे

सारे के सारे बहरे थे

बस उसी समय कुछ पर आए थे,

जब तुम मेरे घर आए थे।


तुम महलों के रहने वाले 

अच्छी बातें कहने वाले 

मैं तुम सदृश आकाश नहीं था

मेरा घर कुछ खास नहीं था

नयन मेरे तब भर आए थे,

जब तुम मेरे घर आए थे।


तुमने मुझको देखा जाना

संघर्षों का ताना-बाना

तुमने खुद को ढाल लिया था

पीर मेरा संभाल लिया था

फिर भी सारे सार मेरे ही सर आए थे,

जब तुम मेरे घर आए थे।

(सिद्धांत तिवारी 'सोनल')

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