' पिता '

 (पिता)



मैं, 

पिता को जानता हूं

क्यों ख़त्म कर दिए

उन्होंने शौक अपने

क्योंकि वो कैसे मेरी मांगें टालते 

वो कैसे विषमताओं में मुझे पालते


वो नहीं चाहते,

मेरी आंखों से भी नज़ारे छूटे

मेरे भी सपने टूटे

मुझसे भी मेरे अपने रुठे


वो चाहते हैं ,

मैं जी लूं वो सब जो वो न जी पाए हों

वो चाहते हैं,

मेरा जीवन सरल व आसान हो

मेरे नाम से उनकी पहचान हो।


(सिद्धान्त तिवारी)

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